ईमानदार असहमति : प्रगति की श्रेष्ठ सूचक

ईमानदार असहमति :  प्रगति की श्रेष्ठ सूचक 

असहमति क्या है ? असहमति वह अवस्था है जिसमे एक व्यक्ति किसी विचार के प्रति आम धारणा से प्रथक विचार रखता है. उसका विचार उसकी अपनी सोच की उपज होता है जो उसके मूल्यों, विश्वासों , अनुभवों से प्रेरित होती है । यह उसके विचार ही हैं जो उसके जीवन तथा उसके  आस पास के समाज को रूप देते हैं. समाज का निर्माण ऐसे ही प्रथक विचारों के संयोग से होता है ,  अर्थात विभिन्न  विचारों का समायोजन ही समाज का निर्माण करता है। इस विचारों के संयोग  को असहमति से ही आकार  मिलता है, असहमति उस सुनार के हथोड़े की चोट की तरह है जो उसे एक पदार्थ से बहुमूल्य भूषण में बदल देती है। दर-असल असहमति एक व्यक्ति की वह क्षमता है जिससे वह एक ही समस्या को दूसरों के नजरिये से एकदम अलग स्वतंत्र भाव से देखता है । असहमति का होना एक समाज में स्वाभाविक भी है तथा आवश्यक भी, क्यूंकि यह सुनिश्चिति करती है की समाज में हर विचार के प्रति आदर होगा और वह कट्टरवादी सोच को उभरने से रोकेगी । यदि समाज में असहमति के तत्त्व नहीं है तो या तो वह पाश्विक समाज है या फिर तानाशाही राज्य की पीठिका । 

इतिहास हमे सिखाता है की किस प्रकार असहमति से ही विश्व को नयी दिशाएं मिली । असहमति के कारण ही ऐसी प्रथाओं का नाश हुआ जो प्रगति में बाधक थी और इसी के फलस्वरूप ऐसी संस्कृतियों का विकास हुआ जिन्होंने समय व परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढाल लिया । भारत वर्ष में जब ब्राह्मण वादी कर्मकांड जोर पकड़ रहे थे और वर्ण व्यवस्था के द्वारा मनुष्य ही मनुष्य का शोषण करने लगा था तो ऐसे में गौतम बुद्ध ने असहमति का विचार रखा ,उन्होंने कर्म कांडों से विपरीत एक नयी धारा का विकास किया जिसमे सभी वर्णो का समावेश संभव था। इसी असहमति के विचार ने भारतीय संस्कृति को अहिंसा और अचौर्य जैसे सिद्धांत दिए । इसके कई वर्षों बाद मराठा सरदार शिवाजी ने भी औरंगजेब के शासन को खुली चुनौती दी , उनके पास यह विकल्प था की वह मुग़लों को आधीनता में अपना राज्य चला लें परन्तु भारत के नए भविष्य हेतु उन्होंने असहमति को ही अपना अस्त्र बनाया । 

शिवाजी और गौतम बुद्ध का उदहारण यह बताता है की असहमति की राह भले ही कठिन हो परन्तु यह व्यक्ति में स्वतंत्र चिन्तन का विकास करती है । व्यक्ति प्रचलित मान्यताओं को तोड़ता है और विश्व से अलग हटकर अपना मुकाम बनाता है । यह असहमति ही नए नेताओं का उदय करती है जो नए समाज व राज्य की नींव रखते हैं । असहमति इस बात पर बल देती है की केवल 
 परिवर्तन ही शास्वत है और परिवर्तन तभी संभव है जब नयी सोच का विकास हो । गैलिलियो गैलिली ऐसा महान व्यक्ति था जिसने अपने विचार को नहीं छोड़ा और आम धारणा को चोट पहुंचाने के लिए उसे मृतुदण्ड मिला परन्तु आज सब जानते है की उसके महान योगदान के कारण ही ग्रहों के बारे में अध्ययन संभव हुआ है ।

असहमति की अभिलाषा एक व्यक्ति को अपनी विशेषक् क्षमता बनाने में सहायता करती है हालांकि यह काम आसान नहीं, अपने विचार को व्यक्त करना ही काफी नहीं है बल्कि उसका लोगों द्वारा ग्रहण  आवश्यक है । बहुदा समाज में किसी विचारधारा या चिंतन के प्रति इतनी अंध-श्रद्धा हो जाती है की उसमे नए विचार के लिए जगह ही नहीं बचती , ऐसा समाज अपनी यथा स्तिथि को ही सर्व श्रेष्ठ मान लेता और ऐसा कोई भी विचार जो उसे बदलने की बात करे  वह उसे मिटा देता है । ऐसे समाज में असहमति का विचार न केवल नयी सोच को बल्कि एक संपूर्ण क्रान्ति को भी जन्म देता है । १७८९ की फ़्रांसीसी क्रान्ति इसका जीता जागता उदहारण है जिसमे कुलीन विशेषाधिकारों के प्रति आम जन ने अपनी असहमति जताई थी । असहमति की विषेशता यह है की वह भले ही कोई सकारात्मक परिवर्तन  न लाये परन्तु वह सोचने की नयी दिशा प्रदान करती है । राजाराम मोहन रॉय ने जब सती प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई तो तत्कालीन समाज में त्वरित परिवर्तन नहीं हुए परन्तु एक नए चिंतन का विकास हुआ जिससे आगे चलकर ब्रिटिश सरकार व्यापक दबाव में इसके उन्मूलन हेतु कानून बनाए  । 

असहमति का विचार परमाणविक श्रृंखला अभिक्रिया के सामान होता है , जैसे एक न्यूट्रॉन कण संपूर्ण क्रिया को शुरू करता है वैसे ही असहमति का एक विचार कई अन्य विचारों को जन्म देता है । भारत में हमने देखा की किस प्रकार चिपको आंदोलन , नर्मदा बचाओ आंदोलन ने सरकार के आद्योगिक विकास मॉडल के विपरीत अपना पर्यावरण वादी मॉडल रखा । इन आन्दोलनों से सरकार की नीतियों में असर दिखा और फिर सरकार ने पर्यावरण रक्षा हेतु कदम उठाये , परन्तु इनका प्रभाव यहीं तक सीमित नहीं रहा । इन आंदोलनों की प्रेरणा से ही कई अन्य सामाजिक आंदोलनों का उदय हुआ जो नारी अधिकार , शराब बंदी , नशा मुक्ति , आदि के विषयों पर बल देते थे । 

राजनीति के छेत्र में भी असहमति का विचार बहुत मायने रखता है । जे एस मिल के अनुसार हर व्यक्ति को अपना विचार रखने का हक़ देना चाहिए भले ही वह विचार समाज के विचार से एक दम अलग हो , क्यूंकि यदि यह विचार गलत है तो समाज का विचार और दृढ़ हो जायेगा और अगर यह विचार सही है तो समाज को एक परिष्कृत विचार मिल जायेगा । गांधी जी ने भी असहमति को ही सत्याग्रह का मुख्य आधार बनाया , उन्होंने जबरन अपनी बात नहीं मनवाई बल्कि अपने स्वतंत्र विचार पर खड़े रहे । उन्होंने लोगों के अंदर   ब्रिटिश सरकार से लड़ने की आग नहीं जलाई अपितु उन्होंने एक ऐसा मानसिक वातवरण तैयार किया जिसमे हर भारतीय ब्रिटिश शासन  से असहमत हो गया और उसने सविनय अवज्ञा को नैतिक मानना शुरू कर दिया  । उसी प्रकार सरदार भगत सिंह  ने भी लोगों    को असहमत होना तथा   अपना विचार रखने  के लिए साहसी बनने  का सन्देश  दिया । यही आदर्श आगे चलकर हमारी संविधान  ने अपनाए और हमे एक ऐसा संविधान दिया सो पंथ निरपेक्षता , भ्रातत्व , सहिस्नुता , और शांति  के आदर्श  रखता है । पक्ष विपक्ष की संसदीय प्रणाली हमारे देश की बहु-वादिता  की रक्षक है , जहाँ  सम्पूर्ण भारत के विचार  संगम की तरह एक नीति में परिवर्तित हो जाते हैं । असहमति  ही वह शक्ति है जिसने हमारे देश को विखंडनीय बलों से बचाए रखा  है । 

असहमति समाज और राज्य के साथ साथ व्यक्ति को भी उसके अपने नीतिशास्त्र निर्माण में सहायक होती है । व्यक्ति किसी प्रचलित  विचार को अपने परिवेश से ग्रहण करता है , उसपर वह लगातार तर्क वितर्क  करता है और अंत में वह अपना स्वयं का नीतिशास्त्र बना  लेता है । वह प्रचलित विचार से असहमत होकर ही नया विचार बनाता है ना की शून्य से किसी विचार का सृजन करता है , इसलिए मूल्यों और व्यक्तित्व के विकास भी असहमति का होना आवश्यक है । आजकल लीव इन सम्बन्धों पर भी व्यापक चर्चा होती है , यह विचार शादी की संस्था को चुनौती देता है , हम यह नहीं कह सकते की यह गलत है या सही परन्तु इतना जरूर मान सकते हैं की इसने नारी मुक्ति को कम से कम एक नयी दिशा तो दी है , जहाँ वह अपने जीवन को पितृ सत्तात्मक समाज से अलग किसी समता वाले रास्ते पर ले जा सकती है । असहमति का यह विचार ही उसे गर्भपात का विकल्प देता है जहाँ  वह अपने स्वास्थय को प्राथमिकता देती है । 

इस प्रकार हम यह कह  सकते हैं की असहमति का विचार किसी  समाज , राज्य व व्यक्ति की प्रगति के लिए आवश्यक है । जिस समाज में असहमति के तत्त्व मौजूद हैं वो उस समाज को कट्टरता से बचाते हैं , वे  ऐसे अवरोधकों और सन्तुलकों की भांति कार्य करते हैं जो समाज को प्रगति  दिशा में ले जाते हैं और उसे  पश्च गामी होने से रोकते हैं । ये  असहमति ही व्यक्ति के मूल्यों का स्वतंत्र विकास करती है , यह नए नेताओं का निर्माण करती है जो अपने विचारों से पूरे समाज में क्रान्ति लाते हैं । कई महान विभूतियों का कथन है की समाज में ऐसी शिक्षा होनी चाहिए जो व्यक्ति में स्वतंत्र चिंतन का विकास करे , ताकि कल वह व्यक्ति अच्छा नागरिक बने  अच्छे समाज का निर्माता भी । इस प्रकार यह कथन सिद्ध होता है की

                                                              "ईमानदार सहमति का होना प्रगति का श्रेष्ठ सूचक है "

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