प्रोद्योगिकी पर अति निर्भरता मानव विकास को बढ़ावा देगी


मानव विकास की परिभाषा हमेशा से ही विचार विमर्श का विषय रही है | कुछ जानकार इसे देश की आर्थिक संवृद्धि से जोड़ते हैं तो कुछ इसे मानव की खुशहाली से मापते हैं | पैमाना जो भी हो पर विकास का मूल मंत्र यही है की मानव अपने जीवन में कितनी स्वतंत्रता का अनुभव करता है , वह अपने हित के लिए साधन जुटाने में कितना सम्पन्न है  और वह समय , परिस्तिथि , पर्यावरण आदि के आधार पर स्वयं को कितना अनुकूलित कर सकता है | यदि मानव के पास उपरोक्त शक्तियां और अधिकार हैं तभी सही मायने में उसे विकसित कहा जाना चाहिए | प्रोद्योगिकी की मानव विकास में अहम् भूमिका रही है |तकनीकी उन्नति के कारण ही आज असाध्य रोगों का इलाज संभव है , घर बैठे बैठे ज्ञान अर्जन हो सकता है , छण भर में लम्बी दूरियां तय करी जा सकती हैं, छुदा मिटाने हेतु पल भर में ही तैयार होने वाले व्यंजन आज हमारे पास हैं और यहाँ तक की भविष्य की गतिविधियों की गणना भी सुपर कंप्यूटर द्वारा करी जा रही हैं |

तकनीकी अनुप्रयोग ने मानव के विकास में गति ला दी है परन्तु क्या अति निर्भरता से इसमें तेजी आएगी , इसके लिए उस मूल्य को समझाना भी आवशयक है जो हमने इस प्रगति के लिए चुकाया है | पर्यावरण का ह्रास, बढती बीमारियाँ और बढ़ता मानवीय अवसाद इस और इशारा करते हैं की कहीं न कहीं तकनीक की अति भी हमारे विकास को उलटी दिशा में ले जा रही है | सकारात्मक व नकारात्मक दोनों पक्षों की तुलना करना इस सन्दर्भ में जरुरी हो जाता है | 

आधुनिक विश्व प्रौधोगिकी से उत्पन्न महान चमत्कारों का साक्षी है| १७वीं सदी में आरम्भ हुई आद्योगिक क्रान्ति विभिन्न तकनीकों व उनके अनुप्रयोगों से जन्मी थी | जेम्स वाट द्वारा निर्मित भांप का इंजन , गैलिलियो की दूरबीन ,कर्ट राइट का पॉवर लूम, आदि ऐसे आविष्कार थे जिन्होंने दुनिया को आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक रूप में एक नयी दिशा दी | यह आद्योगिक आर्थिक बल ही था जिसके कारण यूरोप के छोटे छोटे देश समस्त दुनिया पर हुकूमत चलाने लगे | उन्होंने न केवल अपनी तकनीक का लोहा मनवाया बल्कि इसी की आड़ में अपनी सभ्यता और संस्कृति को भी सर्वत्र थोपने का प्रयत्न  किया|  

आज हम औद्योगिक क्रांति के युग से ३०० साल आगे आ गए हैं | जो यन्त्र तब चमत्कार लगते थे अब तो वह विलुप्त हो चुके हैं तथा उनके विकसित रूप आज हमारे लिए हवा पानी की तरह रोज मर्राह की वस्तु हो गए हैं | जब हम अपने आस पास नजर दौड़ते हैं तो सर्वत्र प्रौद्योगिकी ही विद्यमान दिखती है | हाथ में पकड़ी हुई कलम से लेकर , हवा में तैरते हुए हवाई जहाज हर जगह किसी न किसी प्रौद्योगिकी का दर्शन होता है |

प्रौद्योगिकी के कारण ही आर्थिक रूप से विकास करने में देशों को मदद मिली है | इन्टरनेट के माध्यम से आज बहुमूल्य जानकारी त्वरित रूप से उपलब्ध हो जाती है | कृषि छेत्र में आपदा पूर्वानुमान हो, आद्योगिक छेत्र में मांग - पूर्ती व महंगाई आकलन हो या सेवा छेत्र में बही-स्रोतन, हर छेत्र में तकनीकी प्रयोग द्वारा आर्थिक विकास को बल मिला है | भारत की ही बात करें तो तकनीक के विस्तृत प्रयोग से ही हरित क्रांन्ति का जन्म हुआ, ऊर्जा सुरक्षा हेतु सौर , ज्वार, पवन, अणु उर्जा जैसे गैर परंपरागत स्रोतों का उदय हुआ , आई-टी  क्रान्ति के द्वारा देश का सेवा छेत्रक मजबूत हुआ तथा भारत ज्ञान आधारित पूँजी का केंद्र बना |

आर्थिक प्रगति के साथ साथ मानव विकास हेतु स्वस्थ्य लाभ भी जरुरी है | प्रौद्योगिकी के प्रयोग ने न सिर्फ नए चिकित्सीय साधनों यथा एम.आर.आई, एक्स-रे, कीमोथेरपी, डीएनए री-कम्बिनेंट वैक्सीन आदि को जन्म दिया बल्कि नैनो तकनीक  व बायो टेक्नोलॉजी ने चिकित्सा छेत्र को नया आयाम भी दिया है | आज चिकित्सा के छेत्र में डीएनए प्रोटीन का विस्तृत डाटा (बिग डाटा ) विश्लेषण किया जा सकता है | इसके चलते व्यक्ति के डीएनए प्रोफाइल के अनुसार उसके लिए अधिक असरदार दवा बनायीं जा सकती है |आजकल इ- मेडिसिन के जरिये दूरस्थ छेत्रों में चिकित्सीय परामर्श पहुंचाना आसान हो गया है | साथ ही कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस )के द्वारा ऐसे रोबोट का निर्माण किया जा रहा है जो एक मानव विशेषज्ञ की तरह उपचार बता सकेगा |

तकनीकी सहायता से ही शासन प्रशासन में अधिक सक्षमता आई है | आनलाईन आवेदनों के जरिये कम्पनी पंजीकरण , पासपोर्ट सुविधाएँ, शिकायत निवारण  आदि प्रक्रियाएं आसान बनी हैं वहीँ सीसी टीवी कैमरे, अपराधी डेटाबेस, फोरेंसिक लैब , मेटल डिटेक्टर आदि उपकरणों के द्वारा अपराध-रोधी छमता बढ़ी है | सोशल मीडिया संवाद द्वारा शासन व जनता के मध्य दूरी घटी है तथा  जो दफ्तर लाल फीताशाही के कारण विलम्ब हेतु जाने जाते थे वह भी अब तीव्र कार्यवाही करते हैं | अब शासन तंत्र जनता के विस्तृत आंकड़ों का तेजी से विश्लेषण करने में सक्षम है जिससे वह स्वास्थय, आपदा , आर्थिक सहायता(सब्सिडी) आदि हेतु सटीक योजनायें बना सकता है| देश की सीमा पर निगरानी हो या संसाधनों का अनुमान सैटेलाईट प्रणाली द्वारा अब दोनों एक ही युक्ति से किया जाना संभव है |

समष्टि से हटकर जब हम व्यष्टि स्तर पर देखते हैं तो भी प्रौद्योगिकी द्वारा वैयक्तिक विकास के विभिन्न उदहारण दिखते हैं | हम देख सकते हैं की कैसे वाशिंग मशीन, ओवन आदि के कारण महिलाओं के श्रम में कमी आई है | अब वह घरेलु काम से समय बचाकर अपने विकास हेतु लगा सकती है | साईकिल भी एक छोटी सी ही मशीन है परन्तु २०वी सदी में महिला सशक्तिकरण में इसका वृहद् योगदान था | आधुनिक नारीवादी विद्वान् भी इस बात को स्वीकारते हैं की प्रौद्योगिकी ने महिला मुक्ति को बढ़ावा दिया है | सेनेटरी पैड, कॉपर टी युक्ति , कंडोम , गर्भ निरोधक गोली , आदि से न केवल महिला का स्वास्थ्य सुधरा बल्कि उनके चयन की स्वतंत्रता व अवसरों में भी वृद्धि हुई है |आज आदिम युग की तरह मनुष्य आग , पानी , ज्वालामुखी , तूफ़ान आदि से डरता नहीं है बल्कि आज वह उनका सीना चीर कर नयी खोजें करता हैं| 

आज के प्रेमी युगल ज्यादा विरह विछोह के गीत नहीं गाते क्यूंकि मोबाइल के द्वारा वह २४ घंटें संपर्क में रह सकते हैं | वह दिन दूर नहीं जब टेलीपोर्ट तकनीक के द्वारा एक प्रेमी छण भर में अपनी प्रेयसी के समीप होगा | विछोह का दर्द समिट जायेगा और संयोग श्रृंगार बढ़ता जायेगा , पर प्रश्न यह उठता है की क्या सच में श्रृंगार रस को बढाने वाली वह हरियाली, वह कल कल करती सरिता, वह महकती पवन  और आसमान में चहकते वह पक्षी होंगे| इस सबका जवाब अनिश्चित है और इस पर विचार करना भी  आवश्यक है, जो  तकनीक पर अतिनिर्भरता के अन्य पहलूओं को उजागर करता है |
१९वीं सदी के प्रसिद्ध कवी विलियम वर्ड्सवर्थ ने आद्योगिक क्रान्ति के दुष्प्रभावों को जनता के समक्ष रखा था | उन्होंने कहा: 
" प्राकृतिक सुन्दरता जो बंद आँखों को भी सुख देती थी वह खोती जा रही है , उपवनों की जगह मिलें दिख रही हैं और जहाँ मनुष्य स्वछंद विचरता था वह अब छोटे छोटे घरों के गुच्छों में कैद नजर आता है |"
आज हम २१वीं सदी में हैं और जिस दुष्प्रभाव की तरफ वर्ड्सवर्थ ने इशारा दिया था वह अब यथार्थ बन गया है |

प्रौद्योगिकी पर अति निर्भरता द्वारा जहाँ मानव ने अपना प्रत्यक्ष दिखने वाला कार्य सरल बना लिया है वहीँ जीवन को अप्रत्यक्ष रूप से सँभालने वाले तत्वों को उसने नुक्सान पहुंचाया है | वायु में तीव्र वाहनों द्वारा घोले गए सलफेट, नाइट्रस ऑक्साइड, कार्बन डाई-ऑक्साइड आदि पदार्थों ने वायु को इस प्रकार प्रदूषित कर दिया है की अस्थमा जैसी बीमारियाँ बढती जा रही हैं | जल का मशीनों द्वारा अतिशय दोहन , उच्च पैदावार हेतु घातक कीटनाशी प्रयोग , जायके हेतु खाने में एमएसजी जैसे रसायनों का प्रयोग, युद्धों में जनसंहारक अस्त्रों जैसे अणु बम , रसायन बम , जैव बम आदि उदहारण यह दिखाते हैं की किस प्रकार प्रौद्योगिकी के अतिशय उपयोग का दुष्प्रभाव हुआ है |

अतिशय मशीनीकरण के कारण मानवीय श्रम व उसकी छमता भी घटी  है जिसके कारण मधुमेह, मोटापा आदि बीमारियों ने जन्म लिया है| मानसिक रूप से भी प्रौद्योगिकी का दुष्प्रभाव दिखता है | आज फेसबुक, ट्विटर आदि के द्वारा एक आभासी समाज का निर्माण हो गया है जिससे 'आभासी व्यक्तित्व ' जैसे दोष बढ़ते जा रहे हैं | इसमें व्यक्ति आभासी ई- समाज में तो अपने विचार खुल कर रखता है पर वास्तविकता में वह दब्बू ही बना रहता है | फेसबुक के १ लाइक व कमेंट की प्रतीक्षा में व्यक्ति धीरे धीरे अल्प अवसाद से भर जाता है जो आगे चलकर भयावह रूप ले लेता है | ऐसा ही ज्ञान के सन्दर्भ में भी है , जो ज्ञान बच्चों तक पहले माता पिता से छन छन कर आता था वह अब उन्हें नेट से त्वरित रूप में प्राप्त हो जाता है | इससे बच्चों के अन्दर खोजी प्रवृत्ति कम हुई है तथा वह बालपन की स्वाभाविक उमंग से कटते जा रहे हैं |

इस प्रकार से जहां प्रौद्योगिकी ने हमे विकसित बनाया वही उसके अति प्रयोग ने हमे उसका दास बना दिया है | हमे इस स्तिथि से निपटने के लिए संतुलन की वह रेखा खोजनी होगी जहाँ तकनीक हमारे जीवन को सरल बनाये परन्तु उसकी स्वाभाविक सुन्दरता न छीने| जैसाकि 'गुरुदेव टैगोर''खलील जिब्राहन' ने कहा है की "भाव और तर्क का सही संतुलन ही मनुष्य को उचित मार्ग दिखता है" हमे वैसा ही प्रौद्योगिकी प्रयोग में भी करना होगा | तकनीकी श्रेष्ठता को हमे पर्यावरण रक्षा व मन की शांति से जोड़ना होगा वैभव व संपत्ति से नहीं| आवश्यक है की हम तकनीक के दास न बने बल्कि उसका भी नया विकल्प खोजें, ताकि भविष्य एकांगी न हो | हमे उस नयी दुनिया का सपना देखना होगा जहाँ तकनीक जरूरतों को पूरा करे लालच को नहीं और ऐसी दुनिया के निर्माण हेतु बापू के यह वचन सदैव हमारा मार्ग दर्शन करेंगे |
"हमारी पृथ्वी सभी मनुष्यों की जरूरतों को पूरा कर सकती है , पर लालच के लिए पांच पृथ्वियां भी कम पड़ जाएँगी " 

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सन्दर्भ

  1. रामचंद्र गुहा - A HISTORY OF ENVIRONMENTALISM
  2. खलील जिब्राहन- द प्रोफेट
  3. मोहनदास करमचंद गाँधी - टू स्टूडेंट्स
  4. बिग डाटा - विक्टर मेयर शौन्बेर्गेर
  5. द थर्ड वेव - एल्विन तोफ्फ्लेर









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