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प्रोद्योगिकी पर अति निर्भरता मानव विकास को बढ़ावा देगी

मानव विकास की परिभाषा हमेशा से ही विचार विमर्श का विषय रही है | कुछ जानकार इसे देश की आर्थिक संवृद्धि से जोड़ते हैं तो कुछ इसे मानव की खुशहाली से मापते हैं | पैमाना जो भी हो पर विकास का मूल मंत्र यही है की मानव अपने जीवन में कितनी स्वतंत्रता का अनुभव करता है , वह अपने हित के लिए साधन जुटाने में कितना सम्पन्न है  और वह समय , परिस्तिथि , पर्यावरण आदि के आधार पर स्वयं को कितना अनुकूलित कर सकता है | यदि मानव के पास उपरोक्त शक्तियां और अधिकार हैं तभी सही मायने में उसे विकसित कहा जाना चाहिए | प्रोद्योगिकी की मानव विकास में अहम् भूमिका रही है |तकनीकी उन्नति के कारण ही आज असाध्य रोगों का इलाज संभव है , घर बैठे बैठे ज्ञान अर्जन हो सकता है , छण भर में लम्बी दूरियां तय करी जा सकती हैं, छुदा मिटाने हेतु पल भर में ही तैयार होने वाले व्यंजन आज हमारे पास हैं और यहाँ तक की भविष्य की गतिविधियों की गणना भी सुपर कंप्यूटर द्वारा करी जा रही हैं | तकनीकी अनुप्रयोग ने मानव के विकास में गति ला दी है परन्तु क्या अति निर्भरता से इसमें तेजी आएगी , इसके लिए उस मूल्य को समझाना भी आवशयक है जो हमने इस प्रगति