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दुनिया में गंभीर अज्ञानता और सहमत मूर्खता से ज्यादा कुछ भी खतरनाक नहीं है।

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                                       "बुद्धिमत्ता के दंभ  में हम कितने अनभिज्ञ हो जाते हैं  |"            मैरी शेली   ने अपनी कालजयी रचना " फ्रंकेंस्तीन" में उपर्युक्त वाक्य के द्वारा मानवता की एक जटिल पहेली को सामने रखा है | जिस तरह से इस उपन्यास में "फ्रंकेंस्तीन" द्वारा बनाया गया दैत्य उसके ही सगे सम्बन्धियों को मार देता  है ठीक वैसे ही आज मानवता अपने लिए ही संकटों को निमंत्रण देती नजर आ रही है | फ्रंकेंस्तीन को शायद इस बात का आभास नही था की दैत्य उसके परिवार को मार देगा पर मनुष्यों को अपने ऊपर आने वाले संकटों का एहसास है फिर भी वह इस ओर अनभिज्ञ बना हुआ है|  फ्रंकेंस्तीन उपन्यास पर आधारित एक फिल्म का दृश्य (साभार : दा गार्जियन)             प्रकृति ने जब मनुष्य का निर्माण किया तो उसे मास्तिष्क का उपहार दिया ताकि वह अपने जीवन को अधिक परिष्कृत कर सके और इस धरा को और भी सुन्दर बना सके | मनुष्य ने ज्ञान विज्ञान की सहायता से प्रकृति के भेद को जाना और नित तरक्की के पथ पर आगे बढ़ता रहा | मनुष्य ने गंभीर व्याधियों का समाधान खोजा, जीवन को सरल बन

यश क्षणिक होता है, किंतु अंधकार चिरस्थायी

"ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है  समुंदरों ही के लहजे में बात करता है  खुली छतों के दिए कब के बुझ गए होते  कोई तो है जो हवाओं के पर कतरता है "                                                            - वसीम बरेलवी              जिंदगी की दौड़ में आज हम सब बेहिसाब भाग रहे हैं , कुछ तो अपने लक्ष्यों को पाने के लिए और कुछ तो बस होड़ की होड़ में ही रहने को दौड़ते हैं | जरा रुकिए , तलाशिये की इस भाग दौड़ में जो खो गया वो क्या था ?  कुछ तमगे पाने की ललक में , कुछ कर गुजरने की चहक में  भूल गए हम की जिंदगी कुछ और भी है | जिंदगी केवल कुछ कर गुजरने का सिलसिला नहीं है बल्कि जो कुछ किया उससे हमने क्या दिया इसका जवाब भी खोजना पड़ेगा |             किसी ने खूब ही कहा है की " तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो , हम ही हम हैं तो क्या हम हैं "| अपने स्वार्थ के लिए तो जानवर भी दिन रात लगे रहते हैं पर इंसान वही है जो औरों की भलाई में भी अपना कर्त्तव्य खोज लेता है | अगर हमें अपनी जिंदगी में कोई मूल मंत्र बनाना चाहिए तो केवल यह की " यश के लिए नहीं बल्कि एक अच्छा संसार बना