हम वैसा ही बनते हैं जैसे हमारे विचार होते हैं



"हमको मन की शक्ति देना , मन विजय करें 
दूसरों की जय के पहले खुद को जय करें "

इस मधुर गीत के द्वारा दिया गया सन्देश जीवन का आधार है , इसका आशय है की यदि हम अपने मन को जीत लेते हैं तो हम समस्त संसार को जीत सकते हैं | हमारा मन बनता है हमारे विचारों से और विचार ही हमारे जीवन और कर्म की दिशा तय करते हैं | विचारों के द्वारा ही व्यक्तित्व का निर्माण होता है और एक सही व्यक्तित्व ही जीवन को ऊर्जा व गति प्रदान करता है |

इतिहास ऐसे अनगिनत उदाहरणों से परिपूर्ण हैं जहाँ उपर्युक्त सन्देश जीवंत रूप में दिखता है | कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक का ह्रदय परिवर्तन हुआ और उसने संसार भर में बौद्ध धर्म द्वारा शांति का सन्देश फैलाया | न उसका शरीर बदला न परिवेश , केवल विचार परिवर्तन द्वारा ही वह चंड अशोक से महान अशोक बन पाया |  अकबर ने अपने 'दीन-ए-इलाही' धर्म द्वारा समाज को नए विचार देने का प्रयास किया जिससे धार्मिक सहिष्णुता बनी रहे |

बापू ने भी सत्य अहिंसा का नारा दिया , उन्होंने इसे केवल एक कारवाई या योजना की तरह नहीं अपनाया बल्कि इसे एक विचार की तरह आत्मसात किया | उन्होंने यह आधार रखा की देश में परिवर्तन  बाहर  से नहीं अपितु अपने अन्दर से ही आता है | जब बापू ने स्वतंत्रता को एक विचार के रूप में लोगों के अन्दर स्थापित कर दिया तो आम जनता स्वत स्फूर्त होकर आन्दोलन में कूद पड़ी |

आज के भौतिकतावादी युग में पुन: जरुरत है की विचारों की शुद्धता पर बात हो जिससे विश्व में अमन चैन और सद्भाव का विकास हो | आज सर्वत्र देखा जा रहा  है की वैश्विक तापन का संकट बढ़ता जा रहा है और सरकारें इस ओर प्रयास रत भी हैं | पेरिस जलवायु सम्मलेन , मोंट्रियल प्रोटोकॉल आदि ऐसे कई उपाय  इस समस्या से लड़ने हेतु किये गए , परन्तु यह प्रयास अधूरे हैं तथा वास्तविक मुद्दे से दूर हैं | हम पर्यावरण की चिंता एक संसाधन के रूप में कर रहे  हैं जबकि हमे उसे एक जीवन आधार के रूप में देखना चाहिए | पर्यावरण केवल एक भौतिक वस्तु नहीं जिसे खरीदा बेचा जा सके अपितु यह एक भावना भी है जिसे हम महसूस करते हैं , जिसके भीतर हम रहते हैं |

एक प्रेमी युगल का मिलन नदी के किनारे हो तो वह और सम्मोहक हो जाता है , जब बसंत में ठंडी वायु बहे तो कवी स्वयं ही लिखने को मचलते है , मयूर भी कोमल वर्षा में ही नृत्य करते हैं, मिटटी की सौंधी खुशबू न हो तो घर -आँगन अधुरा लगता है | कल्पना कीजिये क्या स्वच्छ पर्यावरण के बिना यह सुन्दरता संभव होगी ? पर्यावरण केवल हमे जीवन दशाएं नहीं देता बल्कि जीवन को सुन्दर बनाता है | आज ऐसे विचारों को बढ़ावा देने की जरुरत है जो हमें प्रकृति प्रेमी बनाये व्यापारी नहीं | जब हम संतति को ऐसी शिक्षा देंगे तो आने वाले कल में इस संकट को स्वयं हल होता पायेंगे | हमे पुनः यह सूक्ति याद करनी होगी की "हमारी जरूरतों हेतु एक धरा ही काफी है पर लालच हेतु पांच पृथ्वियां भी कम पड़ेंगी"|

विचारों का मंथन ही समाज को निर्देशित करता है , यदि मंथन न हो  तो समाज रुके हुए पानी के भांति दूषित हो जाता है | भारत वर्ष ने अपने ५००० साल के इतिहास में बहुत प्रगति की है , नए विचारों को अपनाया और प्रगति के रास्ते को चुना | हमने एकता में अखंडता को खोजा , सर्व धर्म समभाव कोअपनाया और हर एक को मनुष्य के नाते समान देखा | आज जब मंदिर मस्जिद के झगड़े पुनः सर उठाने लगे हैं तो जरुरी है की हम याद करें अपनी सहिष्णु संस्कृति को | हमारी एकता ही हमारी ताकत है यह याद रखना जरुरी है नहीं तो घात लगाये पडोसी कभी भी हमारी आंतरिक दरारों का फायदा उठा सकते हैं | जात पात , धर्म , उंच नीच , रंग, आदि के बंधनों को मन में तोड़ना होगा जिससे यह देश अखंड बना रहे |

किसी समाज की उन्नति को मापना हो तो उसकी स्त्रियों की दशा को आंकना चाहिए | यह वाक्य आज भी सत्य है , आज यदि हम भारत की उन्नति को देखते हैं तो पाते हैं की महिलाओं के विकास के साथ ही भारत का विकास भी संभव हुआ | आजादी के लड़ाई में जहाँ रानी लक्ष्मी बाई ,सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपलानी , कप्तान लक्ष्मी सहगल की कहानियां हैं वहीँ नए भारत के निर्माण में किरण बेदी, टेसी थॉमस , निर्मला सीतारमण जैसे नाम सामने आते हैं | लेकिन अभी भी भारत में महिलाएं अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है | आज महिला विकास हेतु जरुरी है की भारत में व्याप्त पित्रसत्ता के ढांचे को बदलने हेतु नए विचार गढ़े जाएँ | उस सोच पर चोट की जाये जो महिलाओं को कमजोर मानती है |

महिलाओं को केवल उपभोग्य वास्तु की तरह दिखाने वाले हर माध्यम पर रोक लगानी जरुरी है तथा पुत्रों पुत्रियों में  भेद को ख़त्म करना जरुरी है | इस दिशा में सार्थक प्रयास करती हुई 'बेटी बचाओ बेटी  पढ़ो ' योजना सराहनीय है | साथ ही  दहेज़ निषेध , प्रेम विवाह स्वीकृति , विशेष स्वास्थ्य सुविधाएँ , आदि पर काम करना जरुरी हैं जिससे महिला विकास को बढ़ावा मिले |  राजनीतिक आरक्षण भी वक्त की मांग हैं ताकि महिला आधारित मुद्दों को प्राथमिकता मिले|

बदले वक्त के साथ न केवल महिला अधिकारों बल्कि सैम-लैंगिक लोगों के प्रति भी विचार परिवर्तन जरुरी है | सम लैंगिकता को व्याधि न मानकर स्वेक्ष-आचरण मानना होगा  ताकि सम लैंगिक व्यक्ति भी अपने अधिकारों का खुल कर प्रयोग कर सकें |दिव्यांग व्यक्तियों के प्रति भी हमे दया भाव की जगह अधिकार मूलक भावों को आश्रय देना होगा | उन्हें विकास के सही अवसर देने पर जोर होना चाहिए न की धन देकर आश्रित बनाना | भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया सुगम्य भारत अभियान इस ओर एक अच्छी पहल हैं जहाँ दिव्यंगों के विकास हेतु कई सारे दिशा निर्देश जारी किये गए | यदि स्त्री पुरुष के भेद जैसे ही आम व्यक्ति और दिव्यांग व्यक्ति के मध्य भेद को समझ कर सही अवसर दिए जाएँ तो निश्चित ही उनका विकास संभव होगा | स्टीफेन हाकिंस स्वयं में एक मिसाल हैं की कैसे एक दिव्यांग व्यक्ति भी सही अवसर पाकर 'ब्लैक होल' सरीखी गुत्थियों को भी सुलझा सकता है |

हमारे विचारों के कारण ही हमारे प्रति दूसरों का दृष्टिकोण बनता है | हमने अपनी शक्ति वृद्धि हेतु परमाणु बम का परीक्षण किया परन्तु साथ ही हमने 'नो फर्स्ट यूज़' का विचार भी रखा | हमने समय समय पर इस विचार की पुष्टि भी की और इसी कारण आज NSG व CTBT का सदस्य नहीं होने के बाद भी भारत जापान व अमेरिका आदि  के साथ सिविल परमाणु समझौते से जुड़ा है | हमने पहले भी गुट निरपेक्षता के विचार को आत्मसात किया तथा युद्ध की कगार पर खड़े विश्व में भी शांति का मध्य मार्ग दिखाया था  |

वर्तमान में भी भारत अपने खुले विचारों के कारण एक अच्छा निवेश गंतव्य बना हुआ है | मेक इन इंडिया , स्टार्टअप इंडिया , स्किल इंडिया द्वारा ने केवल देश में रचनात्मकता का मनोवैज्ञानिक माहोल बना अपितु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की छवि का निर्माण हुआ | यही कारण है की आज भारत को २१वीन सदी का विकास इंजन कहा जा रहा है , एक तरफ जहाँ विश्व चीन की आक्रामकता से भयाक्रांत है वहीँ भारत का समावेशी दृष्टिकोण देशों को इसकी ओर आकर्षित कर रहा है | इजराएल से बढ़ते सम्बन्ध , आतंकवाद के विरुद्ध साझी रणनीति , इरान से तेल आयत की छूट , अफ़ग़ानिस्तान में निर्माण कार्य आदि ऐसे उदहारण जहाँ स्पष्ट होता है की भारत के शांतिपूर्ण विचार उसकी उन्नति का मूल हैं |

इस प्रकार हम देखते हैं की विचारों की दिशा से न केवल व्यक्ति बल्कि देश भी सकारात्मक प्रगति पाते हैं | किसी भी समस्या का समाधान यदि ढूँढना हो तो पहले अपने विचारों का मंथन जरुरी है | यदि विचार सही दिशा में हों तो समाधान भी उचित ही निकलता है | भारत में भी विचार मंथन की आवश्यकता है ताकि हमारे सम्मुख उपस्थित पर्यावरण, नारी दशा, शिक्षा, गरीबी, भेद भाव आदि के  मुद्दों का निवारण हो सके| अच्छे विचारों को बनाने पर ही शिक्षा का बल होना चाहिए यही समाज का निर्माण करती है और उसे दिशा देती है | गोस्वामी तुलसीदास जी ने विचारों के महत्व पर ही निम्न दोहा लिखा है , और हमे भी इसे आत्मसात करना चाहिए |



"जाकी रही भावना जैसी

प्रभु मूरत देखि तिन तैसी "|



Comments

Popular posts from this blog

भारत नई विश्व व्यवस्था में एक अनिच्छुक भागीदार ?

क्या युवाओं को राजनीति को एक वृत्ति (करियर) के रूप में देखना चाहिए

यश क्षणिक होता है, किंतु अंधकार चिरस्थायी