यश क्षणिक होता है, किंतु अंधकार चिरस्थायी

"ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है 
समुंदरों ही के लहजे में बात करता है 
खुली छतों के दिए कब के बुझ गए होते 
कोई तो है जो हवाओं के पर कतरता है "
                                                           - वसीम बरेलवी

             जिंदगी की दौड़ में आज हम सब बेहिसाब भाग रहे हैं , कुछ तो अपने लक्ष्यों को पाने के लिए और कुछ तो बस होड़ की होड़ में ही रहने को दौड़ते हैं | जरा रुकिए ,तलाशिये की इस भाग दौड़ में जो खो गया वो क्या था ? कुछ तमगे पाने की ललक में , कुछ कर गुजरने की चहक में  भूल गए हम की जिंदगी कुछ और भी है | जिंदगी केवल कुछ कर गुजरने का सिलसिला नहीं है बल्कि जो कुछ किया उससे हमने क्या दिया इसका जवाब भी खोजना पड़ेगा | 

           किसी ने खूब ही कहा है की "तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो , हम ही हम हैं तो क्या हम हैं "| अपने स्वार्थ के लिए तो जानवर भी दिन रात लगे रहते हैं पर इंसान वही है जो औरों की भलाई में भी अपना कर्त्तव्य खोज लेता है | अगर हमें अपनी जिंदगी में कोई मूल मंत्र बनाना चाहिए तो केवल यह की "यश के लिए नहीं बल्कि एक अच्छा संसार बनाने को जियो "क्यूंकि यश तो आज है कल कहीं अन्धकार में गुम हो जायेगा पर जो हमने इस संसार को दिया है वो यहीं चिरस्थायी रहेगा  |

"एक दिन बिक जायेगा माटी के मोल जग में रह जायेंगे प्यारे तेरे बोल "

          हम बोलें तो ऐसा बोलें जहाँ बाटने की बात न हो , अगर कुछ हो हमारे शब्दों में तो प्यार और भाईचारे की बात हो क्यूंकि बाँटने वाली ताकतें कितनी भी बलशाली हों, एक दिन अपना स्थान खो ही देती हैं | नेपोलियन और हिटलर दोनों ही महत्वाकांक्षी थे और दोनों ने ही कुछ समय के लिए यश जरुर कमाया पर आज वो यश अँधेरे में गुम है | उन्होंने स्वार्थी हितों से इतिहास को नयी दिशा देनी चाही पर समय के आगे दोनों ही नतमस्तक हो गए | आज उनके नाम लिए जाते हैं पर वैसे नहीं जैसे बापू के नाम को स्मरण किया जाता है |

           बापू ने यही सीख दी कि "शत्रु से नहीं उसकी बुराई से बैर रखो , शत्रु को नहीं उसकी बुराई को मारो "| सत्य और अहिंसा के पाठ से बापू ने विश्व को शांति और सद्भाव का मार्ग दिखाया | उन्होंने बिना किसी सेना को नेतृत्व किये ही इतिहास को रक्तपात से पृथक एक शांतिपूर्ण विजय का सन्देश दिया | बापू ने स्वार्थ से ऊपर उठकर सेवा को श्रेष्ठ सिद्ध किया | आज भी सभी देशों को यही समझना होगा की सर्व एकता में ही शांति और विकास निहित हैं |

           बीती सदी में अमेरिका ने अपने शक्ति के दम पर विश्व को अपने अनुसार चलाया , शीत युद्ध के समय में विश्व को धडों में विभाजित भी किया | एक समय सोवियत संघ क पतन के साथ एकध्रुवीय विश्व भी दिखा परन्तु यह यश भी टिक न पाया और  २१वीं सदी की महामंदी ने अमेरिका को पुनः सहयोग मांगने के लिए झुका दिया | आज वैश्विक तापन , आतंकवाद , गरीबी जैसे मुद्दे समस्त विश्व के सामने खड़े हैं ऐसे में यह जरुरी हो जाता है की देश अपने अपने एकल नाम के पीछे न भाग कर समावेशी प्रगति की ओर ध्यान दें | आज "अपने पड़ोसी को भिखारी बना दो " की तर्ज पर विकास करना संभव नहीं रहा , इसीलिए वैश्वीकरण के दौर में सभी हेतु अच्छी  तकनीक, पृथक उत्तरदायित्व, और आत्मनिर्भरता का उद्देश्य सर्वोपरि होना चाहिए |

         आज जरुरी है की देश केवल जीडीपी द्वारा मापित समृधि को ही अपना लक्ष्य न बनाये परन्तु यह देखें की दीर्घकाल में समावेशी विकास किस प्रकार प्राप्त किया जाये | यह जरुरी नहीं की बड़ी बड़ी इमारतें ही बने, या दुनिया के सबसे ज्यादा अमीर हमारे देश में हो , परन्तु यह जरुरी हो की हर वर्ग, हर  तबके तक विकास की लहर पहुंचे| ऐतिहासिक कारणों से कमजोर रहे वर्ग यथा महिलाएं और दलित और शारीरिक मनोवैज्ञानिक रूप से कटे हुए लोग यथा दिव्यांग व्यक्तियों तक विकास प्रेषित करना लक्ष्य होना चाहिए | 

        जे एस मिल ने कहा है की महिलाओं के विकास के बिना देश का विकास नहीं हो सकता क्यूंकि इससे देश महिलों की संभावित दक्षता का फायदा उठाने से वंचित रह जाता है | इस नए युग में महिलाओं को देवी और मनमोहिनी नायिका के मिथ्या सम्मान से बहार निकालना होगा | महिलाओं को पित्त्रसत्तामक समाज में भोग्या , जननी और संगिनी का ही स्थान मिला, अब जरुरी है की वह अपने पुरुष के यश में अपना स्थान खोजने के बजाय अपना स्थान स्वयं बनाये | आज के युग में कल्पना चावला, किरण बेदी , टेसी थॉमस जैसी महिलाओं ने न केवल यश कमाया बल्कि महिलाओं को एक संस्था के रूप में विकास करने का ढांचा भी निर्मित किया | सरकार द्वारा इस प्रगति को तेज बनाया जाना चाहिए तथा महिलाओं हेतु संसद में आरक्षण जैसे कानूनों द्वारा उनकी आवाज को मुखर करना चाहिए | 

            महिलाओं के विकास हेतु शिक्षा बहुत आवश्यक है और  नए युग के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य को भी परिवर्तित करना होगा | नारियों को जहाँ आधुनिक शिक्षा से जोड़ना होगा वहीँ पुरुषों को भी ऐसी शिक्षा देने की जरुरत है जो उनके दृष्टिकोण को भी बदल सके| पुरुषों को महिलाओं को समकक्ष समझना होगा और एक प्रतियोगी की तरह नहीं अपितु एक टीम की तरह काम करने की भावना का विकास करना होगा | शिक्षा इस बात की भी होनी चाहिए की केवल उपलब्धि नहीं बल्कि संतोष भी जरुरी है , इस लिए नैतिकता के विकास पर भी बल देना चाहिए | जैसा की प्रसिद्ध फिल्म ३ इडियट्स में भी कहा गया है :-

                                           "काबिल बनो कामयाबी खुद तुम्हारे पीछे आएगी  "

शिक्षा के सही विकास द्वारा ही दिव्यांग व्यक्तियों को मुख्यधारा में जोड़ा जा सकता है , शिक्षा के पुराने माध्यमों को उनकी जरुरत के अनुसार ढाला जाना चाहिए ताकि वह भी शिक्षित होकर अपना योगदान दे सकें |

        सभी के समावेशी विकास हेतु समावेशी सोच को भी बढ़ावा देना चाहिए, आज कल राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है की पार्टियाँ जोड़ तोड़ , मेरा तेरा , हम और वो की राजनीति कर रही हैं | कोई धर्म की बात करता है कोई जाती की और कोई क्षेत्र की , अपने स्वार्थ के लोभ में मदांध नेता देश के विकास को भूल रहे हैं | यदि सरकारी तंत्रों का प्रयोजन केवल दलगत राजनीती को पूरा करने हेतु होता रहा तो देश कभी विकास नहीं कर पायेगा | राजनीतिक दलों के लिए भी आवशयक है की वो सभी दलों को साथ लेकर सामंजस्य के साथ समाज का निर्माण करें | दूसरों के विचारों को भी समझें ताकि देश के हित में सही निर्णय लिया जाएँ |इसी सन्दर्भ में हेगेल की धारणा उचित लगती है :- 

"वाद और प्रतिवाद एक दुसरे को काटकर अधिक पुष्ट बनाते हैं और इसी से संवाद का जन्म होता है"| 

-आज ने केवल हमारे देश को बल्कि पूरे विश्व को इसी संवाद वाली मानसिकता की आवश्यकता है |

        आम जीवन में भी यश के पीछे भागना यदि हम कम कर दें तो कितनी ही समस्याओं का हल स्वयं निकल आएगा | पद  प्रतिष्ठा और पैसे के दिखावे हेतु आजकल लोग तरह तरह के कार्य करते हैं | शादी में अथाह पैसा बहाना , महंगी गाड़ियों में अकेले घूमना, महंगे जेवरों का प्रदर्शन , बड़े बड़े आलिशान घरों का निर्माण , यहाँ तक की अभद्र विदेशी भाषा का प्रयोग भी 'स्टेटस सिंबल' माना जाने लगा है | क्या यह सब हमारे साथ रह जायेगा, बिलकुल भी नहीं | यदि हम तड़क भड़क की जिंदगी की जगह वृद्धों की सेवा, अनाथ बच्चों का पालन , वृक्ष रोपण आदि में ध्यान लगायें तो देश, समाज और प्रकृति तीनों को लाभ होगा | समारोह और उत्सव गलत नहीं हैं परन्तु उनमे जरुरत से ज्यादा ऊर्जा और धन लगाना सही नहीं है |

        सार रूप में हम यह कह सकते हैं की जीवन का असली मंत्र है सेवा द्वारा यश कमाना , हमारा निजी यश भले ही समय के साथ खो जाये परन्तु हमारे अच्छे कर्म शिला-संदेशों  की तरह अमर हो जाते हैं| वर्तमान युग में वैश्विक शांति , महिला कल्याण, दलित उत्थान, दिव्यांग सशक्तिकरण , और समावेशी विकास के लिए यह जरुरी है की हम मिथ्या यश की होड़ से बचें और सभी के लिए विकास हेतु अपना योगदान दें| इन सुन्दर पंक्तियों के साथ ही अपने विचारों को हम निर्देशित कर लें तो आने वाला कल चहुमुखी प्रगति लायेगा |

"किसी का दर्द ले सके तो ले उधर , किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार , जीना इसी का नाम है |"


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