श्रम बल में महिलाओं का कम और स्थिर भाग : एक विसंगति या आर्थिक सुधारों का परिणाम



                                  "किसी भी राष्ट्र की उन्नति या अवनति उसकी 
                                 स्त्रियों की उन्नति या अवनति पर निर्भर होती है | "
                                                                                             - अरस्तु 
   
  अरस्तु का यह कथन दिखाता है की देश की महिलाएं देश के लिए क्या मायने रखती हैं | महिलाएं किसी भी देश की नींव होती है जिनपर परिवार से लेकर समाज तक की वृहत जिम्मेदारी होती है | महिलाएं बेटी , बहन, पत्नी और माँ के रूप में जहाँ पुरुषों को सहयोग देती हैं वहीँ वह समाज में नव पीढ़ी की रचनाकार और उसके मूल्यों  की पोषिका भी होती हैं | आधुनिक भारत में भी महिला सशक्त रूप में उभर कर सामने आ रही है , आज महिलाओं की भागीदारी हर छेत्रों में देखी जा सकती है | महिलाएं घर गृहस्थी के साथ साथ व्यावसायिक छेत्रों में भी पुरुषों क साथ कंधे से कन्धा मिला आगे बढ़ रही है  | 

                  महिलाओं की यह उन्नति लेकिन कुछ हद में ही हुई है , अभी  महिलाओं का संस्थात्मक रूप में विकास नहीं हुआ है जो की हमारे देश के लिए चिंता का विषय है | आधुनिक युग की वैश्वीकरण वाली अर्थव्यवस्था में जहाँ महिलाओं के लिए अवसर बढे हैं, वहीँ कुछ कारणों से महिला विकास धीमा भी हुआ है |
  
                  २०वीं सदी के अंत में जब भारत ने भूमंडलीकरण को अपनाया तो आशा की यह किरण जागी  थी की भारत में भी पश्चिमी देशों की तरह स्त्रियों की दशा में तीव्र सुधर आएगा | निजीकरण द्वारा जैसे जैसे देश में नए उद्योगों व सेवा छेत्र का विकास होगा वैसे वैसे महिलायों के कल्याण हेतु भी विभिन्न मार्ग खुलेंगे | आज निजीकरण के नीतियों के लागू होने के लगभग २५ वर्ष गुजर चुके हैं और विभिन्न अध्यन यह भी बताते हैं की निश्चित रूप से महिला श्रम भागीदार में परिवर्तन आया है  | निजी उद्योगों यथा कपडा मिल, चमड़ा उद्योग , जूट फैक्ट्री , महिला  प्रसाधन ,शिक्षा छेत्र  आदि में महिलाओं का श्रम बल निश्चित रूप से बढ़ा है | इसका प्रमुख कारण है तेजी से हुआ आधारभूत संरचना का विकास और सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण हेतु लायी गयीं सबला, समाख्या जैसी योजनायें | 
  
                एक तरफ तो निश्चित रूप में यह कह सकते हैं की कुछ नवीन छेत्रों में महिलाओं हेतु रोजगार का उदय हुआ है पर समग्र रूप से किये गए अध्यन यह बताते हैं की महिलाओं का कुल श्रम बल में अनुपात सीमित है और यह स्थाई प्रकृति दिखाता है अर्थात श्रम बल में बढ़ोतरी तो हो रही है परन्तु महिला श्रम बल पुरुषों की तुलना में नहीं बढ़ रहा है  | हाल ही में अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) तथाअन्य संस्थानों की रिपोर्ट में इस प्रवृति का खुलासा किया गया है | इन  रिपोर्टों  के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था में जो परिवर्तन आयें हैं  उसमे भागीदारी हेतु आवश्यक परिवर्तन महिला श्रम बल में नहीं आये हैं | वहीँ दूसरी ओर महिलाओं की बढ़ते शैक्षिक स्तर के अनुरूप नौकरियों का सृजन भी  भारत में नहीं हो पाया है  |
  
               अर्थव्यवस्था में परिवर्तन की बात करें तो हम देखते हैं की १९४७ में भारत में जहाँ कृषि में रोजगार व आय सृजन दोनों ज्यादा थे वहीँ अब कृषि का राष्ट्रीय आय में हिस्सा मात्र १५% है जबकि श्रम बल की खपत में अभी भी कृषि लगभग ५०% भूमिका निभाती है | कृषि की ढांचे में आये बदलाव यथा छोटी अनार्थिक  जोतें, बढती जनसँख्या  आदि   के कारण कृषि में महिला मजदूरों की मांग सीमित हुई |  तकनीकी प्रयोग से भी पुरुषों की अपेक्षा महिला मजदूरों को कम वरीयता मिली | ट्रेक्टर आदि नयी युक्तियों में दक्ष पुरुष महिलाओं के भाग को कम करते गए , तकनीकी उन्नति का जो फायदा  महिलाओं को भी मिलना चाहिए था वह पुरुषों तक सीमित रह गया | 

               उपर्युक्त अवस्था केवल आर्थिक व तकनीकी कारणों से उत्पन्न नहीं हुई , हमारा संस्कृतिक परिवेश भी इस हेतु जिम्मेदार है  | आज भी  तकनीकी शिक्षा में महिलाओं के देखते पुरुषों को ज्यादा महत्व मिलता है , इससे महिलाओं के मन में भी यह भाव जागता है की तकनीकी काम पुरुषों पर ही शोभा देता हैं | वहीँ जहाँ खेती बारी में अधिक आय का सृजन होता है वहां  महिलाओं को वापस घर में ही सीमित रहना पड़ता है | सामाजिक मान्यता यह बंधन आरोपित कर देती है की यदि पुरुष धन अर्जन में सक्षम है तो महिला को काम नहीं करना चाहिए और बच्चों व घर में ज्यादा ध्यान देना चाहिए | महिलाओं का श्रम बल में प्रवेश ससुराल पक्ष की सम्मति पर भी निर्भर करता है जिससे उनका संस्थात्मक विकास बाधित होता है | साइमन द बुवा ने बहुत ही उपयुक्त कहा है :

                                        "महिला पैदा नहीं होती , महिला बनायीं जाती है "

             आर्थिक समीक्षा २०१६-२०१७ महिला म बल में गिरावट की एक और वजह बताता है | हमारे देश में भूमंडलीकरण के पश्चात सेवा छेत्र में तो पर्याप्त विस्तार हुआ जहाँ उच्चा शिक्षा प्राप्त महिला कामगार को रोजगार मिला परन्तु ऐसे छेत्र जहाँ मध्य शिक्षा स्तर वाली महिलाओं को रोजगार मिलता उनका विकास नहीं हुआ | कपडा व चर्म उद्योग महिला रोजगार हेतु उत्तम अवसर दे सकते  हैं  परन्तु विभिन्न निर्यात अटकलों के कारण इस छेत्र का विकास नहीं हो पा रहा  है | वहीँ हमसे छोटे देश यथा बांग्लादेश व इंडोनेशिया इस छेत्र में तीव्र रूप से उन्नति कर रहें हैं |  

                शहरी महिला श्रम बल में प्रवास के कारण भी  गिरावट आई |भारत में योजना काल के दौरान शहरों पर ज्यादा ध्यान केन्द्रित किया गया जिसकी वजह से  शहरों की  ओर गाँवों से पुरुषों का तीव्र पलायन हुआ| इन प्रवासी मजदूरों ने छेत्रीय महिला श्रम बल को विस्थपित किया क्योंकि शारीरिक क्षमता वाले कामों में पुरुषों को ज्यादा वरीयता मिलना स्वाभाविक है | गाँव में रह गयी महिलाएं मनरेगा द्वारा उपजे रोजगार में लग गयीं परन्तु इससे उच्चतर रोजगार छेत्रों में उनका प्रवाह पुनः सीमित हो गया| शहरों में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों के कारण भी कई परिवारों ने अपनी बेटियों व बहुओं  को घर तक सीमित रखना ही उपयुक्त समझा , इस वजह से पढ़ी लिखी महिलाएं भी स्वतंत्र रूप में विकास मार्ग पर नहीं आ सकीं |

               उपर्युक्त स्तिथि को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है की महिलाओं के श्रम बल में पुनः बढ़ोतरी लाने हेतु विविध उपायों की जरुरत है | सर्वप्रथम तो महिला विकास हेतु महिला जन्म व महिला शिक्षा  दोनों का प्रोत्साहन जरुरी है | सरकार द्वारा शुरू की गयी 'बेटी बचाओ बेटी पढाओ' तथा 'सुकन्या समृधि योजना' इस ओर एक स्वागत योग्य कदम है | ये योजनायें न केवल महिला जन्म को प्रोत्साहित करेंगी बल्कि महिलाओं के प्रति रुढ़िवादी रवैय्ये को भी बदलेंगी | सरकार द्वारा महिला कोष, महिला बैंक और स्वयं सहायता समूह आधारित पहलें भी महिलाओं के संथात्मक विकास को बढ़ा रही हैं| लिज्जत पापड की सफल कहानी बताती है की कैसे स्वयं सहायता समूह के निर्माण द्वारा महिलायों ने स्वायत्त व स्वतंत्र विकास का मार्ग अपने लिए खोला है  |

          सरकार की योजनाओं द्वारा कौशल विकास को भी बढ़ावा दिया जा रहा है , इनके प्रभाव स्वरुप  प्रौद्योगिकी का भी लोकतांत्रिकरण होगा और तकनीकी उन्नयन द्वारा महिला विकास भी बढेगा | महिलाओं को तकनीकी प्रशिक्षण हेतु प्रोत्साहित करना व महिला उद्यमियों को बढ़ावा देना सरकार का सराहनीय कदम है | विभिन्न गैर सरकारी संगठनों द्वारा भी महिला सशक्तिकरण  व कठिन हालत से उपजी महिलायों के  पुनर्वास  हेतु कदम उठाये जा रहे हैं | आधार कार्ड आधारित लक्ष्यित लाभ वितरण प्रणाली से महिला विकास में तेजी आएगी तथा सरकार द्वारा निर्यात वर्धन उपायों के द्वारा भी महिला रोजगार बढ़ेंगे | यदि सरकार यूरोपीय संघ व अन्य बाजारों में मुक्त व्यापर समझौते के तहत पहुँच बनाएगी तो इससे देश में महिला रोजगार में वृद्धि होगी |   

              इस प्रकार हम कह सकते हैं की आर्थिक सुधारों ने कुछ छेत्रों में तो महिला श्रम को बढ़ावा दिया परन्तु समग्र रूप में इसमें ठहराव बना रहा | आर्थिक ढाँचे का बदलना महिला श्रम बल में परिवर्तन के अनुरूप नहीं था  इसीलिए कुछ छेत्र महिला श्रम बल को खपा नहीं पाए | बढ़ते शहरीकरण व प्रवास ने महिला हेतु अवसरों को सीमित किया तथा तकनीकी फायदा भी पुरुष श्रम बल की तरफ झुका रहा  | इसके अलावा सामाजिक बंधनों व बढ़ते अपराधों ने भी महिलाओं के विकास को बाधित किया | 

             अब समय आ गया है की सरकार व नागरिक समाज दोनों महिला रोजगार व समग्र विकास को पूरा ध्यान दें| यदि महिला श्रम बल को उपयुक्त स्थान मिल गया तो जी डी पी दर में १.५% तक की बढ़त आएगी वही भारत सही मायने में जनांककीय लाभांश का लाभ ले पायेगा | विभिन्न समावेशी प्रयासों  के द्वारा महिला उत्थान में तेज़ी आई है| आवश्यक है समाज का बदलते समय के अनुसार बदलना और ऐसी सोच को बढ़ावा देना होगा जो महिला को पुरुष से कम न समझे और अर्धनारीश्वर के समतुल्य महत्व को समझे | स्त्री पुरुष के कंधे मिलाने से देश आगे बढेगा | यदि महिलायें नेतृत्व करेंगी तो कई नए आयाम भी खुलेंगे | अंत में महिलाओं की निष्ठा का दर्शन मार्गरेट थेचर के इन वाक्यों से बखूबी समझा जा सकता है |

                                     "यदि आप किसी काम में शब्द चाहते हैं तो पुरुषों से कहें ,
                                     यदि आप काम होते देखना चाहते हैं तो महिलाओं से कहें "
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