दुनिया में गंभीर अज्ञानता और सहमत मूर्खता से ज्यादा कुछ भी खतरनाक नहीं है।
"बुद्धिमत्ता के दंभ में हम कितने अनभिज्ञ हो जाते हैं |"
मैरी शेली ने अपनी कालजयी रचना "फ्रंकेंस्तीन" में उपर्युक्त वाक्य के द्वारा मानवता की एक जटिल पहेली को सामने रखा है | जिस तरह से इस उपन्यास में "फ्रंकेंस्तीन" द्वारा बनाया गया दैत्य उसके ही सगे सम्बन्धियों को मार देता है ठीक वैसे ही आज मानवता अपने लिए ही संकटों को निमंत्रण देती नजर आ रही है | फ्रंकेंस्तीन को शायद इस बात का आभास नही था की दैत्य उसके परिवार को मार देगा पर मनुष्यों को अपने ऊपर आने वाले संकटों का एहसास है फिर भी वह इस ओर अनभिज्ञ बना हुआ है|
फ्रंकेंस्तीन उपन्यास पर आधारित एक फिल्म का दृश्य (साभार : दा गार्जियन) |
प्रकृति ने जब मनुष्य का निर्माण किया तो उसे मास्तिष्क का उपहार दिया ताकि वह अपने जीवन को अधिक परिष्कृत कर सके और इस धरा को और भी सुन्दर बना सके | मनुष्य ने ज्ञान विज्ञान की सहायता से प्रकृति के भेद को जाना और नित तरक्की के पथ पर आगे बढ़ता रहा | मनुष्य ने गंभीर व्याधियों का समाधान खोजा, जीवन को सरल बनाने के लिए यंत्रों का आविष्कार किया , भोजन को नए नए स्वाद दिए और अपनी पृथ्वी से बाहर की दुनिया को भी खंगाला | अपनी वैज्ञानिक रफ़्तार से हमने जीवन को सुकर बनाया परन्तु हमने अपनी सीमाओं का निर्धारण नहीं दिया | आज मनुष्य प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठाने की बजाये उसपे विजय करने को आतुर है , और यही वह मूर्खता है जिसका उसे स्वयं ही आभास नहीं है |
इसी क्रम में आज हमारे सामने वैश्विक तापन एक बड़ी समस्या बनकर उभरा है| इस समस्या का मूल १८वीं सदी की औद्योगिक क्रांति में देखा जा सकता है | इसी समय मानव ने अपनी जरुरत से ज्यादा केवल मुनाफे हेतु उत्पादन शुरू किया | मुद्रा के रूप में संपत्ति अर्जन सुलभ था इसीलिए ज्यादा से ज्यादा उत्पादन करके मनुष्य प्रकृति को अपने खजाने में भरता गया | अपने लालच के कारण मनुष्य ने प्रकृति की सीमाओं का उल्लंघन किया और इसी कारण वैश्विक तापन का जन्म हुआ |
वैश्विक तापन का कुचक्र (साभार: इंडिया सेलेब्रेटिंग.कॉम) |
कारखानों से निकलने वाला धुआं , तेज रफ़्तार गाड़ियों में प्रयुक्त होता ईधन, अपनी जरुरत से कहीं ज्यादा ऊर्जा का प्रयोग आदि द्वारा ही वातावरण में मीथेन , कार्बन डाइऑक्साइड/ मोनो ऑक्साइड , जल वाष्प आदि गैसों का सांद्रण बढ़ गया जिसके कारण धरा का औसत तापमान बढ़ता ही जा रहा है | यह बात भी सही है की १८वीं सदी में इस संकट का किसी को आभास नहीं था परन्तु अब जब सबको इस बारे में ज्ञान है फिर भी इस संकट के प्रति अनभिज्ञ बने रहना और प्रकृति का निर्मम दोहन करना क्या मूर्खता नहीं है ? इसके विपरीत आज हर एक व्यक्ति की जरुरत को बिग डाटा विश्लेषण की मदद से मापा जा रहा है और उत्पादन को नए रूप से बढाया जा रहा है|
विज्ञान ने मनुष्य को प्रकृति के अनुसार आगे बढ़ना सिखाया परन्तु मानव ने विज्ञान का भी दुरूपयोग किया | नाभिकीय विखंडन प्रक्रिया का प्रयोग मनुष्य के विकास हेतु किया जा सकता था परन्तु शक्ति की लालसा में मनुष्य ने पहले नाभीकीय अस्त्र का निर्माण किया बाद में परमाणु रिएक्टर का | मनुष्य ने अपने ही काल हेतु आज न जाने कितने प्रकार के हथियारों का निर्माण कर लिया है और अपनी ही दुर्गति लिखने के बाद भी वह गर्वित है |
एक परमाणु विस्फोट का दृश्य (साभार : एक्सट्रीम टेक) |
प्रकृति संस्कृति के लिए सहज रास्ता देती है , पर जब संस्कृति प्रकृति से ज्यादा खिलवाड़ करने लगती है तो यही शांत प्रकृति विनाश का तांडव लाती है | बड़े बड़े बांधों के निर्माण से मिटटी का कमजोर होना और फिर विनाशकारी भूकम्पों का आना , वैश्विक तापन के कारण अनावृष्टि , अति वृष्टि , हिमपात , सुखा, आदि जैसी घटनाएं , ओजोन छिद्र के कारण डीएनए संरचना में आ रहे परिवर्तन या त्वचा कैंसर के बढ़ते मुद्दे , बढ़ता समुद्र तल , नयी नयी जानलेवा बीमारियाँ आदि स्पष्ट उदहारण है की प्रकृति पुनः संस्कृति यानि मानवता से रुष्ट हो चली है और इसको दंड दे रही है | इस संतुलन को बिगड़ने से रोकना बहुत जरुरी है |
हाल ही में नवम्बर २०१८ में यह समाचार आया की चीन ने डिज़ाइनर बेबी अर्थात जीन-एडिटिंग द्वारा शिशु उत्पन्न किया | प्रकृति के साथ खिलवाड़ के यह नया उदहारण है जहाँ प्राकृतिक विन्यासों को तोड़ा जा रहा है | मनुष्य ने पहले कृषि क्षेत्र में जीन परिवर्तनों द्वारा कपास और सब्जियों में फिर उसके बाद जानवरों के जीन में छेड़खानी की और अब मनुष्य प्रकृति की सबसे सुन्दर रचना यानि स्वयं को ही बदलने में लगा है | आने वाले कल में हो सकता है की पुत्र की चाह में पुत्रियों का जन्म ही असंभव बना दिया जाये | प्रकृति द्वारा स्थापित संतुलन शायद इस प्रकार नष्ट होता जायेगा |
वहीं,आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस के विकास से मनुष्य ने अपनी श्रम क्षमता को भी सीमित करने का मार्ग खोज लिया है | | AI के द्वारा एक क्रियाशील मास्तिष्क का निर्माण संभव हो रहा है जहाँ मशीन पहले मानव से सीखेगी फिर धीरे धीरे उसी की जिंदगी से जुड़े फैसले करने लगेगी | इन्टरनेट ऑफ़ थिंग्स के आने से मानव के खान को पान को निर्धारित करने से लेकर उसकी दवाओं का ख्याल भी मशीन ही रखेगी | स्वचालित कार , रोबोट असिस्टेंस , डॉक्टर रोबोट, यांत्रिक दवाएं , आदि आने वाले कल की सच्चाई हैं ,क्या यंत्रों पर इतनी निर्भरता ठीक है ?
मनुष्य ने विज्ञान के क्षेत्र में खासी प्रगति कर ली और इसे ही अपने विकास का पैमाना मान लिया पर यहीं से उसकी असल मूर्खता शुरू हुई | उसने विज्ञान की प्रगति में सामाजिक प्रगति को पीछे धकेल दिया | समाज में आज भी महिलाएं अपना सही स्थान पाने हेतु हर देश में लड़ रहीं हैं , पित्रसत्ता का ढांचा आज भी उनके हकों में झुकने को तैयार नहीं है | भारत जैसे देश में जहाँ मंगल पर यान भेजने की तैयारी हो रही है वहां देश की राजधानी में महिला अकेले बाहर निकलने से डरती है| ऊँच-नीच और अमीर गरीब की खाइयाँ इतनी चौड़ी है की हर साल लाखों किसान आत्म हत्या कर लेते हैं | हमारे ही देश में अंधविश्वासों के चलते आज भी नीम हकीम और ढोंगी साधुओं का बोल बाला है | क्या यह हमारी मुर्खता नहीं की हम केवल वैज्ञानिक उन्नति में रत हैं और सामाजिक उन्नति को नहीं खोजते|
महिला अधिकार प्रदर्शन (साभार: कन्वर्सेशन) |
आज थोड़ा रुक कर आत्म चिंतनद्वारा इस आत्म मुग्धता और मूढ़ता को दूर करने की जरुरत है | विज्ञान ने हमें गलत राह नहीं दिखायी बल्कि हमारे लालच ने हमसे विज्ञान का दुरुपयोग कराया है | आवश्यकता है की विज्ञान को समाज के लिए और समाज के अनुसार दिशा दी जाये |हमें फिर उत्पादन के लक्ष्य को पुनः जरुरत के अनुसार ढालना होगा | लोगों को अधिक उपभोग हेतु उकसाने के बजाये जिम्मदारी पूर्ण जीवन जीना सिखाया जाना चाहिए | पर्यावरण के प्रति निष्ठा और प्रेम को जगाना होगा | अधिक ऊर्जा नहीं सही ऊर्जा उपभोग को लक्ष्यित करना होगा|
जीन एडिटींग का प्रयोग बीमारी दूर करने हेतु होना चाहिए न की डिज़ाइनर शिशु के निर्माण में | AI जैसी युक्तियों का प्रयोग कर दिव्यांग व्यक्तियों को अधिक दक्षता दी जानी चाहिए ताकि वह अपना जीवन स्वयं निर्मित कर सकें | श्रम के महत्व को पुनः स्थापित करना होगा जिससे की AI और अन्य तकनीक रोजगार पर संकट न बने बल्कि नए क्षेत्रों व नए अवसरों का सृजन करें |
विज्ञान की सहायता से समाज में व्याप्त अंधविश्वासों को दूर करना होगा | राकेट के साथ साथ ऐसी छोटी छोटी तकनीकों पर भी काम करना जरुरी है जिससे आम आदमी की जिंदगी में बदलाव आये | सिंचाई के नए तरीके, नए फसल चक्र ,हीड्रोपोनिक्स जैसी नयी विधियाँ , महामारियों का सही पूर्वानुमान , खाद्य क्षमता व शक्ति वर्धन आदि ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ मनुष्य बहुत से काम कर सकता है | मनुष्य को यह सीखना होगा की उसे अपनी अज्ञानता को मिटाना है और मानवता के सम्पूर्ण विकास का संकल्प लेना है | इसी से कल हम एक बेहतर विश्व का निर्माण कर पायेंगे |
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