सच्चा ज्ञान यह जान लेने में है कि आप कुछ नहीं जानते
सुकरात ने कहा था कि आप तभी सच्चे ज्ञान को पा सकते हैं जब आप किसी पूर्वाग्रह में न फसे हो। कुछ नया सीखने के लिए बहुधा पुरानी मान्यताओं से अलग सोचना ही पड़ता है। जब मनुष्य ये मान ले की उसने सब कुछ जान लिया है और नए ज्ञान की खोज करना बंद कर दे तो उसकी प्रगति वहीँ रुक जाती है। समय के साथ उसके ज्ञान पर धूल चढ़ जाती है और फिर नए समय से कदम न मिला पाने के कारण उस ज्ञान और व्यक्ति दोनों का ही आस्तित्व सन्कट में पड़ जाता है । प्रगति मनुष्य की हो, समाज की, विज्ञान की या फिर राज्य की वो इस बात पर ही टिकी होती है की पिछला कुछ भुलाया जाये और कुछ नया खोज जाये। जब आप यह मान लेते हैं कि आप के पास जो ज्ञान है वो सीमित है और समय के साथ वो खत्म जायेगा तब आप नए विचारों को खोजते हैं। बदलते समय के साथ आप स्वयं में बदलाव लाते हैं और फिर आप प्रगति करते हैं। जब आप यह मानने को तैयार हो जाएं की कोई भी ज्ञान शास्वत नहीं है , तभी आप नए समाज के निर्माता भी बनेंगे। नया ज्ञान न सिर्फ नयी सोच देता है बल्कि वह अच्छे/ बुरे, न्याय/ अन्याय आदि के मध्य भी नए विभाजन स्थापित करता है। सुकरात ने न्याय की परिभाषा करते हु...